भारत में पायी जाने वाली मिट्टियाँ, प्रकार, वितरण, संघठन, प्रतिशत ( types of soil, percentage, distribution, composition )
मिट्टी पृथ्वी की सबसे ऊपरी पतली व असंगठित परत को कहते हैं ,जो चट्टानों की टूट-फूट से प्राप्त खनिजों,सड़े-गले जीवो के अंश, ह्यूमस, जल, वायु और सूक्ष्म जीवों से मिलकर बनी है।
भारत में भू- विज्ञानिक चट्टानों,तापमान और भिन्न जलवायवीय दशाएं पाई जाती हैं,इसलिए देश में विभिन्न प्रकार की मृदा का अच्छा विकास हुआ है । भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा गठित अखिल भारतीय मृदा संरक्षण समिति ने भारतीय मृदा को 8 भागों में बांटा है, जो इस प्रकार है-
1.जलोढ़ मिट्टी ( Alluvial soil )
2.काली मिट्टी ( Black soil )
3.लाल मिट्टी (Red soil)
4.लैटेराइट मिट्टी (Laterite soil)
5.पर्वतीय मिट्टी (Mountain soil)
6.मरूस्थलीय मिट्टी (Desert soil)
7.क्षारीय और नमकीन मिट्टी (Alkaline soil)
8.दलदली/पीट मिट्टी (Marshy soil)
1. जलोढ़ मिट्टी(Alluvial soil)
जलोढ़ मिट्टी भारत का सबसे बड़ा मृदा समूह है। इसका विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाया जाता है जो देश की कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 45.6% है। इस मृदा का निर्माण नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़को से हुआ है इसलिए इसे अक्षेत्रीय मृदा कहते हैं इसका अन्य नाम प्रवासीय मिट्टी या कछारी मिट्टी भी है।
इस मिट्टी का विस्तार लगभग संपूर्ण उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत में नदियों की घाटियों तथा डेल्टाई क्षेत्रों में पाया जाता।
इस मिट्टी में चीका मिट्टी, बलुई मिट्टी की मात्रा लगभग समान होती है इसलिए इसे दोमट मिट्टी भी कहते हैं ।
जलोढ़ मिट्टी में फास्फोरस ,नाइट्रोजन और ह्यूमस की सामान्यतः कमी पाई जाती है फिर भी यह विश्व की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी में से एक है । इस मिट्टी में पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
जलोढ़ मिट्टी से चावल, गेहूं,जूट,कपास,तम्बाकू, मक्का, तिलहन, आदि फसलों की गहन कृषि की जाती है।
2. काली मिट्टी (Black soil)
काली मिट्टी या रेगुर भारत का दूसरा सबसे बड़ा मृदा समूह है। इसका विस्तार लगभग 5.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाया जाता है जो देश की कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 16.6% है l
इस मिट्टी का निर्माण क्रिटेशियस कालीन बेसाल्टिक लावा के विखंडन से हुआ है । इस मिटटी का सर्वाधिक विस्तार महाराष्ट्र राज्य में पाया जाता है । गुजरात के काठियावाड़, मध्यप्रदेश के मालवा प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ भागों में काली मिट्टी का विस्तार पाया जाता है ।
काली मिट्टी में लोहे की अधिकता पाई जाती है जबकि ह्यूमस कमी होती है । काली मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है इसलिए इस मिट्टी में सिंचाई की कम आवश्यकता होती है अथवा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है । सूखने पर इन मिट्टियों में गहरी व चौडी दरारे हो जाती हैं इसलिए इसे स्वत: कृष्य मिट्टी भी कहते हैं।
काली मिट्टी कपास उत्पादन के लिए आदर्श होती है इसलिए इसे काली कपासी मिट्टी भी कहते है । इन मिट्टियों में गेहूं ,मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा,चावल,तम्बाकू आदि) की अच्छी कृषि होती है।
3. लाल मिट्टी (Red Soil)
लाल मिट्टी भारत का तीसरा बड़ा मृदा समूह है। इसका विस्तार लगभग 3.5 लाक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाया जाता है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.6% है। लगभग संपूर्ण तमिलनाडु राज्य में लाल मिट्टी का विस्तार पाया जाता है । कर्नाटक ,आंध्रप्रदेश,तेलंगाना,उड़ीसा, छत्तीसगढ़,झारखंड और मध्य प्रदेश के कुछ भागों में भी लाल मिट्टी का विस्तार पाया था इन मिट्टियों का निर्माण ऑक्सीकरण की क्रिया के द्वारा होता है।
लाल मिट्टी में नाइट्रोजन और ह्यूमस की कमी पाई जाती है तथा इसमें लोहे की अधिकता होती है।
सिंचाई सुविधाओं का विस्तार कर और रासायनिक उर्वरक का उपयोग कर लाल मिट्टी से कपास ,चावल ,मोटे अनाज, गन्ना ,तिलहन ,दलहन की फसल पैदा की जा सकती है।
4. लेटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)
लेटेराइट मिट्टी का निर्माण उष्ण, आर्द्र और शुष्क जलवायु के क्रमिक परिवर्तन वाले क्षेत्रों में होता है। इन मिट्टियों का निर्माण निक्षालन प्रक्रिया के द्वारा होता है। जल में घुलनशील पोषक तत्व जैसे चुूना और सिलिका जल में घुलकर मृदा की निचली परत में पहुंचने की क्रिया को निक्षालन कहते हैं। इस प्रकार लैटेराइट मिट्टी निक्षालन प्रक्रिया से अत्यंत प्रभावित है। तेजी से अनुपजाऊ हो रही है।
लेटराइट मिट्टी लाल रंग की होती है। गीली होने पर मिट्टी चिपचिपी हो जाती है जबकि सूखने पर ईंट के समान कठोर हो जाती है।
इस मिट्टी में नाइट्रोजन,ह्यूमस,चूने,सिलिका की कमी तथा लोहे की अधिकता होती है।
लेटराइट मिट्टी चाय,कॉफी,रबड,मसाले आदि की बागवानी फसलों के लिए उपयुक्त है।
लेटराइट मिट्टी का विस्तार पूर्वी घाट, मेघालय तथा राजमहल पहाङियों के क्षेत्रों में पाया जाता है।
5. पर्वतीय मिट्टी (mountain soil)
इन मिट्टियों का विकास विशेष रूप से हिमालय के ढालों के सहारे पाए जाने वाले वनों में हुआ है, इसलिए वन मृदा ( forest soil ) भी कहते हैं।
इन मिट्टियों में ह्यूमस अधिक पाया जाता है। पर्वतों के ढालो पर यह मिट्टियां कम गहरी तथा छिछली है जबकि पर्वतों की घाटियों में यह मिट्टी अच्छी तरह विकसित अर्थात मिट्टियों की मोटाई अधिक है ।
यह मिट्टियां चाय ,कॉफी, मसाले और विभिन्न प्रकार के बागवानी फसलों के लिए प्रसिद्ध है। हिमालय के अतिरिक्त इन मिट्टियों का विकास दक्षिण भारत में पहाड़ियों की ढालों पर हुआ है।
हिमालय क्षेत्र में पर्वतों के ढालों पर सीडी नुमा खेत बनाकर इन मिट्टी उसे गेहूं मक्का जौ आलू की अच्छी उपज प्राप्त की जाती है।
6. मरुस्थलीय मृदा (Desert soil)
मरुस्थलीय मृदा का विकास 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में हुआ है l यह मिट्टियां विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान में विकसित है गुजरात पंजाब हरियाणा के कुछ भागों में ये मिट्टियां पाई जाती हैं ये मिट्टियां मुख्यतः रेतीली प्रकार की हैं तथा अनुपजाऊ है परंतु सिंचाई सुविधा का विस्तार हो जाने ये मिट्टियां उपजाऊ हो जाती है। इस मृदा में ह्यूमस और नाइट्रोजन की कमी होती है ।
राजस्थान में इंदिरा गांधी द्वारा सिंचाई सुविधाओं का विकास कर इन मिट्टियों से कपास गेहूं मोटे अनाज की अच्छी उपज प्राप्त की जा रही है।
7. क्षारीय या नमकीन मृदा (Alkaline/Saline soil)
यह मृदा राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में विस्तृत है।
इन मिट्टियों का विकास विशेष रूप से नहरों से सिंचाई वाले क्षेत्रों में हुआ है जहां केशिका क्रिया के द्वारा भूमिगत लवण सतह के ऊपर आ गये हैं।
सोडियम व मैग्नीशियम की अधिकता के कारण यह मुदा लवणीय हो गई है अर्थात नमक के टुकड़े सतह पर आ गए हैं जबकि कैल्शियम व पोटेशियम की अधिकता से ये मिट्टियाँ क्षारीय हो गई हैं जिससे यह मृदा कृषि अयोग्य हो गई हैं, इसे स्थानीय रूप से रेह, कल्लर,कार्ल, ऊसर, चोपन कहते हैं। Inmatogo gypsum इन मिट्टियों को जिप्सम और चूना मिलाकर तथा सिंचित कर सुधारा जा सकता है l
8. दलदली/ पीट मृदा (Marshy/Peat Soil)
यह मिट्टियाँ विशेष रूप से नदियों के डेल्टाई भागों में अच्छी तरह विकसित है। इनमें ही ह्मयूस की अधिकता होती है तथा घुलनशील लवण पाए जाते हैं । डेल्टाई क्षेत्रों के अतिरिक्त ये मिट्टियां उत्तर भारत के तराई क्षेत्र में तथा केरल के कोट्टयम तथा अलपुझा जिलें में अच्छी तरह विकसित है। केरल में इन मिट्टियों को कारी ( kari) कहते हैं। ये मिट्टी चावल की खेती के लिए उपयुक्त होती है l
FAQ
Q. भारत में सबसे अधिक पाई जाने वाली मिट्टी कौन सी है ?
Ans.जलोढ़ मिट्टी ( Alluvial soil )
Q. मिट्टियों के प्रकार ?
Ans.1.जलोढ़ मिट्टी ( Alluvial soil )
2.काली मिट्टी ( Black soil )
3.लाल मिट्टी (Red soil)
4.लैटेराइट मिट्टी (Laterite soil)
5.पर्वतीय मिट्टी (Mountain soil)
6.मरूस्थलीय मिट्टी (Desert soil)
7.क्षारीय और नमकीन मिट्टी (Alkaline soil)
8.दलदली/पीट मिट्टी (Marshy soil)
Q.काली मिट्टी का दूसरा नाम ?
Ans. रेगुर, कपासी मिट्टी, कृष्य मिट्टी।
Q. भारत में सबसे अधिक उपजाऊ मिट्टी ?
Ans. जलोढ़ मिट्टी ( Alluvial soil )